Thursday, November 5, 2009

बोन्दासी में गुरुदेव की अमृत वर्षा

तो अब क्या करना है...
हरि ॐ का तो गुंजन करना है और वोह ही मेरा हैं..
.और यह थोड़े दिन के लिए मेरा मेरा है, छूटने वालाही...
और वोह सदा के लिए मेरा है...
यह बात समझने में आपको देर लगी क्या?
यह बात झूठी लगती है क्या?
सच्ची है, पक्की है?
तो जो अपना नहीं है, वोह तो नहीं है..
.जिसको अपना मानते हैं, वोह्भी सदा नहीं रहता..
.मेरे खिलोने, खिलोने रहे क्या?
मेरी शर्ट,मेरी नन्ही सी बुश-
कोई दे भी देतो इतने बडे बाबा को इतनी सी बुश-शर्ट कैसे आएगी?
लेकिन उस समय जो मेरा हरि साथ में था, वोह अभी भी है..
.उसी को बोलतेहैं - आड़ सत् , जुगात सत् , है भी सत्, होसे भी सत्...तो जो सत् है, उस को तो अपना मानो, प्रीति करो..
.और जो बदलने वालाही उसका उपयोग कर लो...
माता कि, पिता कि, कुटुंब कि, समाज कि,भगवान् कि, सेवा कर लो, बस हो गया..
.दोनो हाथ में लड्डू...और उल्टा क्या करते हैं
तो बोलते हैं हमारा है, और खपे खपे खपे....
.और जो अपना था, है, रहेगा, उसका पता नहीं.. .इसीलिये अशांति बढ़ गयी सारे वर्ल्ड मे ....सारी दुनिया में...
मेरा एक सेवक अमेरिका से लौट कर आया है,
बोल रह था अमेरिका की हालत बहुत बुरी है..
पहले जो एक डॉलर में मिलता था पैट्रोल, उसका तीन गुना भाव हो गया...
पहले जो टोल टैक्स 50 पैसे थे, पाँच पाँच डॉलर हो गए...
तो यह सारे अच्छे दिन, बूरे दिन आते
लेकिन वोह परमात्मा सदा साथ रहता है, इसीलिये कहते है -हरि सम जग कछु वस्तु नहीं..
.और उसको रिझाने के लिए, उसकी शक्ति पाने के लिए,
उसको अपना मानकर प्रेम करो...प्रेम पंथ सम नहीं पंथ..
.और सद्गुरु सम सज्जन नहीं,
दुनिया का सज्जन कोई संसार कि चीज देगा जो छूटने वाली है,
और सद्गुरु तो ऐसे देंगे हंसते खेलते,कि मौत का बाप भी नहीं छीन सकता............