Wednesday, March 31, 2010
कैसी मस्ती है
जिस बालक को माँ ने अपना माना है,वह छोरा दौड़कर गोद में चढ़ जाय तो माँ हँसेगी और जानकर ऊँ-ऊँ-ऊँ करके रोता है तो माँ हँसती है कि देखो ठगाई करता है मेरे से।छोरे की वह कौन-सी क्रिया है,जिससे माँ को प्रसन्नता नहीं होती है।ऐसे ही हम भगवान् के बनकर जो भी करें,हमारी हर क्रिया भगवान् का भजन हो जायेगी।कुछ भी काम करो भगवान् खुश होते रहते हैं।यह मेरा बालक खेल रहा है। कैसी मस्ती है
Monday, March 29, 2010
Sunday, March 28, 2010
Saturday, March 27, 2010
Friday, March 26, 2010
Thursday, March 25, 2010
कामना पूर्ति-जनित जो सुख है,वह त्याग करने में हमें समर्थ नहीं होने देती,तो कोई चिन्ता नहीं। जिस समय आप त्याग करने की सोचेंगे, उसी समय वह कामना निर्जीव हो होगी।और जैसे-जैसे यह लालसा आपकी बढती जयेगी कि मुझे कामना रहित होना है,मैं बिना कामना-रहित हुए रह ही नहीं सकता। आप सच मानिये,सभी कामनायें अपने आप नाश हो जायेंगी।
Wednesday, March 24, 2010
Chintan raag se bhi hota hai aur dvesh se bhi hota hai ve dono aapko bahar bhatkate hai Isliye dinme bar bar Ishwar-Chintan karke apne aapme aate raho.
अपनी निर्बलता का ज्ञान वेदना जाग्रत करने में समर्थ है।यदि उस वेदना को परदोष-दर्षन से दबाया ना जाय ,तो वेदना भी स्वत: दोषों को भस्मीभूत कर निर्दोषता की स्थापना में समर्थ हो जाती है और फिर निर्दोषता दोषों को पुन: उत्पन्न नहीं होने देती।इस द्रष्टि से वेदना और दोषों को न दोहराना ही निर्दोष बनाने का मुख्य हेतु है।
अपनी निर्बलता का ज्ञान वेदना जाग्रत करने में समर्थ है।यदि उस वेदना को परदोष-दर्षन से दबाया ना जाय ,तो वेदना भी स्वत: दोषों को भस्मीभूत कर निर्दोषता की स्थापना में समर्थ हो जाती है और फिर निर्दोषता दोषों को पुन: उत्पन्न नहीं होने देती।इस द्रष्टि से वेदना और दोषों को न दोहराना ही निर्दोष बनाने का मुख्य हेतु है।
Monday, March 22, 2010
अनिश्चित से इस संसार में एक बात तो सत्य है और वह यह है कि परमेश्वर
हो सकता है तुम मुझे नहीं जानते हो पर मैं तुम्हारे विषय में सब कुछ जानता हूँ।
मैं तेरे उठने और बैठने को जानता हूँ और तेरे विचारों को दूर से ही समझ लेता हूँ।
तुम मुझ में जीते और चलते-फिरते रहते हो।
मैं तुम को माता के गर्भ में आने से पहले से जानता हूँ।
मैं ने ही निश्चित किया था कि समय तुम्हारा जन्म होगा और तु कहाँ रहोगे।
मैं तुझ से दूरनहीं हूँ
मैं तुम को उससे बहुत अधिक देता हू जो तेरे पिता ने तुझ को दिया था।
क्योंकि मैं सर्वोत्तम पिता हूँ।
मैं ही तेरा पूर्तिकर्ता हूँ और मैं ही तुम्हारी सारीर ज़रूरतों को पूरा करूँगा।
मैं कभी भी तेरे लिए भला करना नहीं छोड़ूँगा।
यदि तू मुझे अपने पूरे दिल से ढूँढे तो निश्चय ही मुझ को पा लेगा।
जब तेरा दिल टूटा होता है तब मैं ही तेरे सब से निकट रहता हूँ। और एक दिन मैं तेरी आँखों के हर आँसू को पोंछ डालूँगा। तब मैं तेरी सारी पीड़ा और दुख दूर कर दूँगा जो तूने इस संसार में सहे थे।
मैं सदा से पिता हूँ और पिता ही रहूँगा।
मेरा प्रश्न यह है कि “क्या तुम मेरी संतान बनना चाहते हो
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
हो सकता है तुम मुझे नहीं जानते हो पर मैं तुम्हारे विषय में सब कुछ जानता हूँ।
मैं तेरे उठने और बैठने को जानता हूँ और तेरे विचारों को दूर से ही समझ लेता हूँ।
तुम मुझ में जीते और चलते-फिरते रहते हो।
मैं तुम को माता के गर्भ में आने से पहले से जानता हूँ।
मैं ने ही निश्चित किया था कि समय तुम्हारा जन्म होगा और तु कहाँ रहोगे।
मैं तुझ से दूरनहीं हूँ
मैं तुम को उससे बहुत अधिक देता हू जो तेरे पिता ने तुझ को दिया था।
क्योंकि मैं सर्वोत्तम पिता हूँ।
मैं ही तेरा पूर्तिकर्ता हूँ और मैं ही तुम्हारी सारीर ज़रूरतों को पूरा करूँगा।
मैं कभी भी तेरे लिए भला करना नहीं छोड़ूँगा।
यदि तू मुझे अपने पूरे दिल से ढूँढे तो निश्चय ही मुझ को पा लेगा।
जब तेरा दिल टूटा होता है तब मैं ही तेरे सब से निकट रहता हूँ। और एक दिन मैं तेरी आँखों के हर आँसू को पोंछ डालूँगा। तब मैं तेरी सारी पीड़ा और दुख दूर कर दूँगा जो तूने इस संसार में सहे थे।
मैं सदा से पिता हूँ और पिता ही रहूँगा।
मेरा प्रश्न यह है कि “क्या तुम मेरी संतान बनना चाहते हो
मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
अगर मन इन्द्रियों के साथ चलेगा तो समझो परमात्मा रूठे है ..तो निचे जाएगा… मन को ऊपर उठाना है तो सत्संग किया, नियम का आदर है तो उंचा उठेगा..मन बुध्दी के अनुसार चलेगा..
अगर बुध्दी ज्ञान स्वरुप है तो सही निर्णय देगी…जिस के प्रिय भगवान नहीं, जिस के लिए भगवत प्राप्ति मुख्य नही, उस का संग ऐसे ठुकराओ जैसे करोडो वैरी सामने बैठे है यद्यपि वो परम स्नेही हो..
मन है फिसलू भैया!…. इस के चंगुल में फसना नहीं…धैर्य से , दृढता से नियम करता है वो इस के चुंगल में फसेगा नहीं ..
अगर बुध्दी ज्ञान स्वरुप है तो सही निर्णय देगी…जिस के प्रिय भगवान नहीं, जिस के लिए भगवत प्राप्ति मुख्य नही, उस का संग ऐसे ठुकराओ जैसे करोडो वैरी सामने बैठे है यद्यपि वो परम स्नेही हो..
मन है फिसलू भैया!…. इस के चंगुल में फसना नहीं…धैर्य से , दृढता से नियम करता है वो इस के चुंगल में फसेगा नहीं ..
Parmatma ko chhodkar jo vishayo ka chintan karte hai unke bade durbhagya hai vish ka chintan karnese maut nahi hoti par vishayo ka chintan karne matra se patan!!!
मेरे ऐसे दिन कब आयेगे कि देह होते हुए भी मै स्वयं को अपने देह से अनुभव करूँगा ?... एकांत मै बैठा-बैठा मै अपने मन-बुद्धि को पृथक देखते-देखते अपनी आत्मा मे तृप्त होऊगा ?... मे आत्मानंद मे मस्त रहकर संसार के व्यवहार मे निश्चिंत रहूगा ? ... सत्रु और मित्र के व्यवहार को मे खेल सम्जुंगा ?"
मेरे ऐसे दिन कब आयेगे कि देह होते हुए भी मै स्वयं को अपने देह से अनुभव करूँगा ?... एकांत मै बैठा-बैठा मै अपने मन-बुद्धि को पृथक देखते-देखते अपनी आत्मा मे तृप्त होऊगा ?... मे आत्मानंद मे मस्त रहकर संसार के व्यवहार मे निश्चिंत रहूगा ? ... सत्रु और मित्र के व्यवहार को मे खेल सम्जुंगा ?"
Sunday, March 21, 2010
Chahai kitne bhi viprit paristhitiya kyu na aajaye lakin apne man ko udvighna n honedo samay bit jayega paristhitiya badal jayangi tab japdhayan karunga yah sochkar apna sadhan-bhajan n chodo viprit paristhiya ane par yadi sadhan-bhajan mai dhil di to paristhitiya aap par havi ho jayegi lakin yadi aap majbut rahai sadh...an-bhajan par atal rahai to paristhitiyo ke sir par pair rakhkar aage badhnai ka samarthiya aajayega
Saturday, March 20, 2010
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